हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

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धरा पर पेड़ पौधों  का सजा जो  आवरण है।

मिला नदियों से हमको स्वर्ग का वातावरण है ।।

न डालो मैल नदियों में न काटो पेड़ मानो ,

यही तो रोग को सीधा बुलावा विष वरण है ।।

अभी जागे नहीं तो रोग का आह्वान  होगा ,

सभी  वीमारियों  का मूल  ही  पर्यावरण है ।

सभी ये जानते तो हैं नहीं क्यों मानते हैं ,

हुआ पथ भ्रष्ट जाने क्यों हमारा आचरण है ।

बहुत नक्षत्र हैं ब्रहम्माण्ड में पर हम कहाँ हैं ,

हमें धरती हमारी दे रही अब भी शरण है ।

अभी कलयुग की दस्तक है धरा पै शोर देखो ,

अनौखे रोग विष कण का तभी आया चरण है ।

हिमालय क्रोध में आया बढ़ा है ताप उसका ,

हमारी  त्रुटियां  "हलधर" हमारा आमरण है ।

-जसवीर सिंह हलधर , देहरादून