हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

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तू इमारत मैं कंगूरा रूठ मत जाना कभी,

तू दवा है मैं धतूरा रूठ मत जाना कभी ।

नाचना मंजूर है तेरे इशारों पर मुझे ,

तू मदारी मैं जमूरा रूठ मत जाना कभी ।

तुझ बिना श्रृंगार जीवन का अधूरा है सनम,

पूर्ण है तू मैं अधूरा रूठ मत जाना कभी ।

पाक दामन है तेरा मैं गंदगी का ढेर हूं ,

कूप तू मैं एक घूरा रूठ मत जाना कभी ।

आइना तू बिंब रूपक की कसौटी पर खरा ,

हीर तू मैं कांच चूरा रूठ मत जाना कभी ।

रोशनी तेरे बिना घर वार में संभव नहीं ,

चांद तू मैं दीप नूरा रूठ मत जाना कभी ।

प्रश्न तेरे और मेरे उत्तरों का अंत क्या ,

यक्ष तू मैं मूर्ख पूरा रूठ मत जाना कभी ।

राह "हलधर" को दिखाए कौन है तेरे सिवा ,

दृष्टि तू मैं वीर सूरा रूठ मत जाना कभी ।

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून