हरियाली तीज - विनोद शर्मा

तुम बिन फीकी तीज मौसम की हरियाली,
तुम्हारे संग की यादें प्यार भरी तीज दे गयी।
झूलों की बौछारें मद्धम मद्धम मौसम की,
रुके हुए जल में ककंर मार तरंग दे गयी।
वृक्ष के सूखे पत्तों पे दमके बूंद शबनम सी,
संग ले चली अपने सुंगध पुरवाई सरगम की।
पूर्णिमा के चांद जैसी छन-छन इठलाती-सी,
मन के आंगन में फिर विरह के पल दे गयी।
तनमन फिर खिल उठा महक उठे बीते क्षण,
पपीहे का शोर गरजा घिरे मेघा मन भावन।
भीग गई पलकें और यादों संग मैं भीग गया।
हरी भरी धरा में आई तीज की बधाई दे गयी।।
हरियाली तीज का प्यार भरा एक रंग दे गयी,
धरा से भरा अंबर तक इंद्रधनुष से बांध गई।
स्वर्ग से धरा तक थी घूंघट में सजी सवंरी सी,
हरियाले खेत में भू की गोद धूंप देखो खिली।
मेरी संगनी खुशियों से जीने का ढंग दे गयी,
रेखा आई प्यार भरी हरियाली तीज दे गयी।
विनोद के अकेलेपन पर मिलन का संगम,
उड़े ग़म जीने का एक सुखद सा क्षण दे गई।।
वृक्ष की डाली पर झूलते थे संग पेंग बढ़ाकर,
शर्मीली हंसी खिलता मुखड़ा झलक दे गयी।
हरियाली तीज का प्यार भरा उपहार दे गयी,
हरियाली तीज का प्यार भरा उपहार दे गयी।
-विनोद शर्मा 'विश' दिल्ली