ग़ज़ल - झरना माथुर
Thu, 12 May 2022
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उनसे बातो ही बातों में बात हो गयी,
बदला मौसम और बरसात हो गई।
क्या हुआ, कैसे, कब, क्यो हुआ,
यूँ आँखों ही आँखों मे रात हो गई।
भावे ना अब कोई, तेरे सिवा मुझे ,
जब से इक हंसीं मुलाकात हो गई।
उन्होनें किया इज़हार इशारा देके,
बिना सोचे मैं उसके साथ हो गई।
आके ख्वाब में जो उसने छुआ मुझे,
साथ मेरे अजीब सी करामात हो गई।
मैं झरना सी बहती चली साथ उसके,
पकड़ा जो हाथ रंगीं कायनात हो गई।
- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड