ग़ज़ल - विनोद निराश

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तुम क्या जानो कैसे जीते हैं ,

जहरे-वफ़ा दिन रात पीते हैं।

ताउम्र रहे वो साथ-साथ पर ,

आज दोनों हाथ मेरे रीते है।

हम तो हारे कदम-दर-कदम,

संगे-दिल हर बाज़ी जीते है।

उस बेवफा की बात क्या करें,

फुरकत में जख्मो को सीते है।

अपना गम लेकर जाए कहाँ,

निराश तन्हा ही आँसू पीते है।

 - विनोद निराश , देहरादून