गजल  - ऋतु गुलाटी

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जमाने मे लिखे फसाने हुऐ है,

मुहोब्बत मिले अब जमाने हुऐ है।

रहे तडफते इस जहाँ मे कभी के,

मिली बेरूखी जब बहाने हुऐ है।

मिले जख्म दिल को हमारे यहां पर,

दुनिया से समझो बेगाने हुऐ है।

कहाँ जा रहा आदमी वक्त से कह,

खुशी से हकीकत छिपाते  हुऐ है।

तन्हाई सताने लगी जख्म दे ऋतु

यहां लोग दिखे  पुराने हुऐ है।

- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़