गजल - ऋतु गुलाटी
Aug 26, 2022, 23:01 IST
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माना रखते शान नही है,
इंसा है भगवान नही है।
पाये खुशियाँ जीते जी जो,
इससे बढ सम्मान नही है।
घर घर मे जो पूजा जाये,
सेवा हो मेहमान नही है।
आओ गाये गीत मिलन के,
इससे बढ अरमान नही है।
पास रहे तू मेरे साजन।
इससे बढ़ कर शान नही है।
बच्चे करते तरक्की जब भी
होता फिर अपमान नही है।
बच्चे होते है जब घर मे।
होता घर सुनसान नही है।
खुद की नजरो से जो गिरते।
पाते वो सम्मान नही है।
करते है गुनाह *ऋतु दिनभर
फिर भी क्यो अंजान नही है।
- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़