ग़ज़ल - ऋतु गुलाटी 

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क्यो? डरे हम कहर से नही और कुछ।

जिंदगी  मगर ये  है नही और कुछ।

घाव  वो  हमको  देते रहे वो सदा।

क्यो? सताते हुनर है नही और कुछ।

आज क्यो? रह रहे घर में तन्हा सभी।

हो रहे   बेकदर  है   नही और कुछ।

क्यो? मरे खूबसूरती पे  आज भी।

देखने को नजर है नही और कुछ।

 लूटने क्यो? लगे गैर बन वो सभी।

*ऋतु तमाशा शहर है नही और कुछ

रीतू गुलाटी.ऋतंभरा, चंडीगढ़