ग़ज़ल - निभा चौधरी
Jan 23, 2023, 22:56 IST
| तेरे इन्कार से, इक़रार से डर लगता है,
धूप से साया-ए-दीवार से डर लगता है।
नींद आती है तो सोने नहीं देती ख़ुद को,
ख़्वाब और ख़्वाब के आज़ार से डर लगता है।
हम तो अपनों की इनायत से परेशां हैं निभा,
क़बा हमें शोरिशे अग्यार से डर लगता है।
रोज़ बढ़ जाती है कुछ दर्जा घुटन सीने की,
रोज़ कटते हुए अश्जार से डर लगता है।
नाख़ुदा तेरे रवैय्ये से सहम जाती हूँ,
वरना कश्ती से न पतवार से डर लगता है।
- निभा चौधरी, आगरा, उत्तर प्रदेश