गजल - मधु शुक्ला

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है यही हमने जमाने का चलन देखा,

ध्यान सीरत पर नहीं सुंदर बदन देखा।

ढूँढ़ना मुश्किल हुआ ईमान का रक्षक,

रुक न पाया मन जहाँ सज्जित चमन देखा।

पाँव धरती पर रहें उन्नति तभी संभव,

ठोकरें उसको मिलीं जिसने गगन देखा।

बाँटते हैं ज्ञान जो दिन रात दुनियाँ को,

चाह कंचन के लिए उनका पतन देखा।

'मधु'  सहारा  बुद्धि  का  मजबूत होता है,

इस लिए ही शिष्य का गुरु ने जहन देखा।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश