गजल - मधु शुक्ला
Nov 21, 2022, 22:45 IST
| सत्य को साथी नहीं कोई बनाना चाहता है,
आदमी अब चैन की वंशी बजाना चाहता है।
अब पड़ोसी, मित्र की चिंता नहीं हम लोग करते,
लोक हित से अब मनुज खुद को बचाना चाहता है।
मित्रता कर स्वार्थ से हम हो गये हैं आलसी अब,
अब न श्रम का बोझ अपना तन उठाना चाहता है।
यदि अतिथि कोई पधारे हम बहुत मायूस होते,
अब हृदय अपना नहीं रिश्ते निभाना चाहता है।
कर्म की तासीर से अनभिज्ञ रहकर आदमी क्यों,
हेतु अपने ढ़ेर सारा धन कमाना चाहता है।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश