ग़ज़ल हिंदी- जसवीर सिंह हलधर

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सदा नफरत की लहरों पर उतारी कश्तियाँ मैंने ।

जले हैं हाथ कोशिश में बचाई बस्तियां मैंने ।

जहाँ में आज जीना हो गया है सख्त कलियों का ,

बुरे हालात हैं बेशक  बचाई तितलियाँ मैंने ।

हवा बेदर्द हो कर के जले  दीपक बुझाए गर ,

रखी हैं बादलों से कुछ चुराकर बिजलियां मैंने ।

जमी जो धूल रिस्तों पर मेरी कोशिश हटाने की ,

बढ़ा कर हाथ दो अपने घटायीं दूरियां मैंने ।

बहुत नाजुक बहुत चंचल बड़ी ही सोख होती हैं ,

कलेजे से लगाकर ही रखी हैं बेटियां मैंने ।

बड़ा मुश्किल यहां पर जाति का लेखा मिटा देना ,

नतीजा कुछ भी हो घर से हटा दी तख्तियां मैंने ।

भला मानो बुरा मानो सदा सच बोलता "हलधर ,

नहीं झूंठी बटोरी आज तक भी सुर्खियां मैंने ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून