ग़ज़ल हिंदी- जसवीर सिंह हलधर
Sep 22, 2022, 23:11 IST
| सदा नफरत की लहरों पर उतारी कश्तियाँ मैंने ।
जले हैं हाथ कोशिश में बचाई बस्तियां मैंने ।
जहाँ में आज जीना हो गया है सख्त कलियों का ,
बुरे हालात हैं बेशक बचाई तितलियाँ मैंने ।
हवा बेदर्द हो कर के जले दीपक बुझाए गर ,
रखी हैं बादलों से कुछ चुराकर बिजलियां मैंने ।
जमी जो धूल रिस्तों पर मेरी कोशिश हटाने की ,
बढ़ा कर हाथ दो अपने घटायीं दूरियां मैंने ।
बहुत नाजुक बहुत चंचल बड़ी ही सोख होती हैं ,
कलेजे से लगाकर ही रखी हैं बेटियां मैंने ।
बड़ा मुश्किल यहां पर जाति का लेखा मिटा देना ,
नतीजा कुछ भी हो घर से हटा दी तख्तियां मैंने ।
भला मानो बुरा मानो सदा सच बोलता "हलधर ,
नहीं झूंठी बटोरी आज तक भी सुर्खियां मैंने ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून