ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

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बिना पूछे  हमें जो भी सफ़ाई दे रहा है ।

वही षड्यंत्र में शामिल दिखाई दे रहा है ।

किसी उजड़े हुए को घर बसाने की खिलाफ़त ,

उसी  के  भाषणों  में अब सुनाई  दे रहा है ।

उसे अंधा किया है राजनैतिक लालचों ने ,

लहू के रंग जैसी वो हिनाई दे रहा है ।

हुआ बीमार ख़ुद है रोग है उसकी ज़ुबा पर ,

किसानों को बिना मांगे दवाई दे रहा है ।

बयानों में सियासत ख़्वाब में है राजधानी ,

वही हमको हराने की दुहाई दे रहा है ।

दलालों से संभालना काम है हर इक बशर का ,

सही रस्ता यही हमको सुझाई दे रहा है ।

तिरंगा हाथ में ले आग विघटन की दिखाता ,

वही सरकार को "हलधर" बुराई दे रहा है ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून