गज़ल - डा किरणमिश्रा

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शब-ए-हिज्र से, यादों की जंग जारी है।

बिखरे ख्वाब,मौसम में अजब खुमारी है।

तेरे बातों से, बावस्ता इन अश्कों  की,

सहर होने  तक, पलकों से  रंगदारी   है।

जिंदगी  में, मिलन हो या  कि बिछुड़न,

किस्मत पर,चली  किसकी जोरदारी है।

तल्ख़ अहसासों की सुफेद चादर में कैद,

जश्न-ए-वस्ल़,  सीने  में इक कटारी है।

लिखूँ क्या ,मसलहा अब तेरी इबारत का,

तुझसे तो #किरण  इश्क़ की  रंजदारी है।।

- डा किरणमिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा, उत्तर प्रदेश