ग़ज़ल- अनिरुद्ध कुमार

 | 
pic

जिंदगी को आजमाया था नहीं,

आदमी का प्यार पाया था नहीं।

खुद खुशी में रात दिन रहते कभी,

गैर को अपना बनाया था नहीं।

रात दिन की चाँदनी यह जिंदगी,

उलफतों से दिल लगाया था नहीं।

दर्द के आगोश में अब जी रहें,

आँख से आँसू बहाया था नहीं।

गर्म सी बहती हवा चारो तरफ,

गम खुशी अपना बताया था नहीं।

ले रहीं है इम्तिहाँ यह जिंदगी,

आफतों ने गम जताया था नहीं।

'अनि' खड़ा अंजान सा दहलीज पे

इस तरह रिश्ता निभाया था नहीं।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड