गीतिका सृजन - मधु शुक्ला

 | 
pic

हों जिन्हें सद्कर्म प्रिय जीते वही #सम्मान से,

खुश रहें वे द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध के बलिदान से।

क्या कभी #सम्मान पाया है किसी ने प्रेम बिन,

प्रेम मन में जागता संवेदना के ज्ञान से।

वंदना अभिमान की जो लोग करते जगत में,

मिल न पाते वे कभी #सम्मान की मुस्कान से।

जोड़ती परिवार को ममता, क्षमा की भावना,

जब मिले #सम्मान सबको जी सकें सब शान से।

बाँटते हैं आप जो पाते वही संसार में,

क्यों रहें अनभिज्ञ फिर #सम्मान की मुस्कान से।

- मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश .