गीतिका - मधु शुक्ला
Jan 24, 2023, 23:09 IST
| कष्ट पाता है हृदय लख द्वेष की भरमार को,
कर रहा है प्रति दिवस यह खोखला संसार को।
देख कर नैतिक पतन जग का लगे मन को यही,
लील लेगा शीघ्र ही यह आचरण व्यवहार को।
कोष जब संवेदना का रिक्त होता जा रहा,
कौन पालेगा जगत में प्रेम की बौछार को।
हम बनायें स्वच्छ वसुधा नौनिहालों के लिए,
रोप कर हर पग सुमन काटें घृणा के खार को।
कर्म जो पैदा करें नफरत उन्हें हम त्याग दें,
प्राथमिकता दें सदा हम प्रेम के उद्गार को।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश