गीत - जसवीर सिंह हलधर                                      

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मेरे मन के बृन्दावन में ,  रहने वाली कचनार कली ।

धोखा मैं तुझको दे आया,ढूंढे मत मुझको गली गली ।।

मेरा यह काम जरूरी था ,पापा को वचन  दिया  मैंने ।

उनके बलिदानों के पथ पर ,सेना का चयन किया मैंने ।।

माँ को भी मैंने बता दिया ,पूरा रुख अपना जता दिया ।

माँ और तेरे अरमानों का ,इस कारण दमन किया मैंने ।।

भारत माता की सेवा में ,मैंने अपना पथ बदल दिया ।

तू माफ़ मुझे कर देना अब, मत बोले मुझको कटी जली ।।

मेरे मन के वृंदावन में ,रहने वाली कचनार कली ।।1।।

तू अरमानों से पली बढ़ी ,पावन सी परम पुनीता है ।

पापा की प्यारी सी बिटिया ,उनकी नजरों में सीता है ।।

मम्मी की भोली सी गुड़िया,भैया को जादू की पुड़िया ।

माधव के हाथों रची हुई , मुझको तू लगती गीता है ।।

अदना सा फ़ौज सिपाही हूँ ,तेरा मेरा कोई मेल नहीं ।

मेरे चक्कर में जीवन भर ,महसूस करेंगी छली छली ।।

मेरे मन के वृदांवन में ,रहने वाली कचनार कली ।।2।।

मेरे जीवन का एक लक्ष्य , बस पहरा सरहद पर देना ।

भारत माँ को जो आँख तके ,बैरी का जीवन हर लेना ।।

तेरे मेरे पथ भिन्न भिन्न ,मत कर अपना मन खिन्न खिन्न ।

रातें सरहद के नाम हुई , कब सपनो को मिलती रैना ।।

अश्कों से आँखें मत  धोना ,तू चुपके चुपके मत रोना ।

मेरा जीवन तो सेना का , तू तो मत अपनी चढ़ा बली ।।

मेरे मन के वृंदावन में , रहने वाली कचनार कली ।।3।।

इतनी दानी नहीं जिंदगी ,जो भूखे को भोजन दे दे ।

एक साथ दोनों रह पाएं , ऐसा नियम नियोजन दे दे ।।

मेरी मित्र रात यह काली ,सरहद पर होली दीवाली ।

मुक्ति मांगता प्रेम बंध से ,मुझको प्रीत विमोचन दे दे ।।

तू मंत्री की प्यारी बाला ,मैं हूँ सरहद का रखवाला ।

"हलधर" ने गीत लिखा  ऐसा , हर पंक्ति सत्य के तेल तली ।।

मेरे मन के वृंदावन में ,रहने वाली कचनार कली ।।4

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून