गीत - जसवीर सिंह हलधर
उत्तम खेती वाला देखो ,भारत में वरदान रो रहा ।
व्यापारी के भुज पाशों में ,खेत और खलिहान रो रहा ।।
धरा पूत चेहरा है पीला ,नेता के गालों पर लाली ।
उसका सूना आँगन रोता ,लाला के घर में खुशहाली ।
मंडी का सौदागर हँसता ,खेती का बलिदान रो रहा ।।
उत्तम खेती वाला देखो ,भारत में वरदान रो रहा ।।1
जब से भारत मुक्त हुआ है ,आजादी कब भायी उसको ।
कीमत निर्धारण की नीती ,कभी रास क्या आयी उसको ।
कर्जे के दानव से हारा ,गांव गली का मान रो रहा ।।
उत्तम खेती वाला देखो ,भारत में वरदान रो रहा ।।2
शहरों की कोठी हँसती हैं ,देख गांव की झोंपड़ियों को ।
चिकना बदन चिढ़ाता रहता ,भूखी प्यासी अंतड़ियों को ।
जलती चिता गवाही देती,चीख चीख शमशान रो रहा ।।
उत्तम खेती वाला देखो ,भारत में वरदान रो रहा ।।3
कोरी भाषण बाजी सुनते ,आये हम सत्तर सालों से ।
कोई ठोस उपाय न आया ,ऊपर लाये जंजालों से ।
सरकारी जुमले बाजी में ,हलधर "का सम्मान रो रहा ।
उत्तम खेती वाला देखो ,भारत में वरदान रो रहा ।।4
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून