गीत - जसवीर सिंह हलधर

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जीवन के सब चरण अटल हैं , भीड़ पड़ी तो डरना कैसा ।

जन्म हुआ तो मरण अटल है , नाम करे बिन मरना कैसा ।।

चार दिनों की जीवन लीला ,रस हर पल पल का  लेता चल ।

जो भी पाया है इस जग से ,कर्जा जन गण का देता चल ।

दुख सुख सिक्के के पहलू हैं ,फिर इनका ग़म करना कैसा ।।

जन्म हुआ तो मरण अटल है ,नाम करे बिन मरना  कैसा ।।1

अमर आत्मा है मानव की, माना सबने सत्य सनातन ।

पांच तत्व की देह खिलौना ,जीना मरना नीत पुरातन ।

पतझड़ के मौसम में तरु का ,झर झर आँसू झरना कैसा ।।

जन्म हुआ तो मरण अटल है ,नाम करे बिन मरना कैसा ।।2

मानव जीवन  रंग मंच है , भव सागर की सजी पालकी ।

कोई नहीं अछूता इससे , सब पर चलती छड़ी काल की ।

धन बल का अब छोड़ आसरा , कालिख बीच विचरना कैसा ।।

जन्म हुआ तो मरण अटल है , नाम  करे बिन मरना कैसा ।।3

ये तन है माटी का टीला , धातु बना संयंत्र नहीं है ।

इसको कोई अमर कर सके, ऐसा कोई मंत्र नहीं है ।

हलधर " डूब महा सागर में , उससे पार उतरना कैसा ।।

जन्म हुआ तो मरण अटल है ,नाम करे बिन मरना कैसा ।।4

 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून