लोकगीत - झरना माथुर

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सावन में पीहर मोहे याद आये,

बाबुल का वो अँगना मुझको बुलाये,

जिसमें बीता है बचपन वो सताये।

रस्ता देखे मेरी माँ की दुआयें,

दिल में अरमानो के सपने सजाये,

बाबुल की मुझको बाते याद आये।

भाई के माथे पे चंदन लगाऊँ ,

राखी का मैं वो हर बंधन निभाऊँ,

भाभी संग देख मन ही मन मैं इतराये।

आसमां पे काली-काली वो घटायें,

मिलने को प्रीतम से मुझको बुलाये,

नगमों की बारिश में भीगे- भिगाये।

-झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड