आग नफरत - ऋतु गुलाटी

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आग दिल की अब लगाना बस करो।

पाप  की  गंगा  बहाना  बस करो।।

खो गयी इंसानियत, पत्थर सभी।

बेसहारा को मिटाना बस करो।।

जी रहे खारजां जीवन अभी। (दुखी)

नौचता है पंख, चुभना बस करो।

तुम न लेना बददुआएं भी कभी।

दर्द उनको अब दिलाना बस करो।

जिंदगी तो प्यार से कटती ऋतु अभी।

जुल्म  छोड़ो   अब सताना बस करो।।

ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़