क्षमा की कलम से - डा० क्षमा कौशिक

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मिले जो प्यार अपनों से वही पूंजी है जीवन की

ये धन दौलत, झूठी शान बस तृष्णा है मानव की

कमाई प्रेम की दौलत वही बस साथ जायेगी

माया तो छला करती है छलकर तब भी जायेगी।

कहीं तो गिर रहा है हिम हवा ठंडी चली है,

ओढ़ कोहरे की चादर को  दिशाएं सो रही हैं,

कोकिले मौन है, पंछी नहीं उड़ते मुंडेरों पर,

कली गुमसुम, नही आती धूप रंगने गुलाबों को।

मगर मित्रों ये सच है कि सुबह की शुभ घड़ी है।

- डा० क्षमा कौशिक, जी०एम०एस० रोड, देहरादून