कहीं चुभे न तुमको खार प्रिये - मंजू शाक्या 

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लाल आलता लगे पांव कोमल सुंदर सुकुमार प्रिये,

धरती पर मत धरना इनको कहीं चुभे न तुमको खार प्रिये!!

तुम कंचन कामिनी  गुणवंती तुम रूपवती लजवंती हो,

जिसे देख देख खिल उठे हृदय तुम तो ऐसी दमयंती हो,

मुस्कान मधुर आती लब पर नथ चूमें अधर तुम्हारे जब,

अनगिनत दामिनी दमक उठें बिंदिया मारे लस्कारे जब,

कुदरत ने तुमको बक्शा है सुंदरता का उपहार प्रिये,

धरती पर मत धरना इनको कहीं चुभे न तुमको खार प्रिये।।

जो देखे  होश गवां बैठे तेरे खंजन से नैनों में,

रसधार छलकती है मधुरिम हर पल  प्रिय तेरे बैनों मे,

जुल्फों को छूकर पुरवाई भी बेकाबू बहने लगती,

सर सर सर सर वो झूम - झूम कुछ कानों में कहने लगती,

झुमका झन झन कर दे हमको फिर आमंत्रण का तार प्रिये,

धरती पर मत धरना इनको कहीं चुभ ना जाय  खार प्रिये!!

नीदों से बैर हुआ अब तो और चाँद लगे मनभावन है,

हर दिवस लगे मधुमास मुझे हर माह लगे ज्यों सावन है,

कटि कर धनियाँ के घुंघरूं भी तुमको छूकर इतराते जब,

भरकर इन आँखों में तुमको हम अनगिन ख़्वाब सजाते तब,

कर लो स्वीकार मेरी चाहत बस इतनी है मनुहार प्रिये,

धरती पर  मत धरना इनको कहीं चुभे न तुमको खार प्रिये!!

- मंजू शाक्या - दिल्ली