हार नहीं मानूँगी - अनुराधा प्रियदर्शिनी

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हार नहीं मानूँगी कभी भी,

चाहे जितनी भी मुश्किल हो,

राहों में चाहे शूल बिछे हों,

उठती हो या ज्वालामुखी,

अंगारों पर चलना पड़े तो,

हँसकर ही है कदम बढ़ाना।

मन मरूथल सा प्यासा है,

मंजिल  पाने को व्याकुल,

मोह पाश में नहीं बँधेगा,

नित पग आगे बढ़ते जाना,

दृढ़ संकल्प लिया है मैंने,

हार नहीं मानूँगी कभी भी।

जीवन एक संघर्ष हमेशा,

जिसमें होंगे तुफां हजारों,

कश्ती किनारे पर ले जाना,

कठिन चुनौती बीच मझधार,

हौसला जो मन भीतर में,

मार्ग प्रशस्त कर जाएगा,

हार नहीं मानूँगी कभी भी।

- अनुराधा प्रियदर्शिनी

प्रयागराज,  उत्तर प्रदेश