अंजामे-इश्क - गुरुदीन वर्मा

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अंजामे-इश्क मेरे दोस्त , होता है अंत में ऐसा।

कोई बदनाम और बर्बाद, इश्क के अंत में ऐसा।।

अंजामे- इश्क मेरे दोस्त----------------।।

मचल जाते हैं दीवाने, हसीन फूलों को देखकर।

इकट्ठे कर लेते हैं, चमन से फूल ये चुनकर।।

मुरझा जाते हैं जब ये गुल,करते हैं हाल ये ऐसा।

अंजामे- इश्क मेरे दोस्त----------------।।

इश्क क्यों नहीं होता है, कभी  काले मुखड़ों से।

करते हैं दोस्ती तो लोग, फकत गौर ही मुखड़ों से।।

करते क्यों नहीं है इंकार , बहिन को करने से ऐसा।

अंजामे- इश्क मेरे दोस्त-----------------।।

अपने माँ बाप को क्या तुम, मार दोगे मोहब्बत में।

बेच दोगे वतन अपना, इतना गिरकर मोहब्बत में।।

गाली नहीं दे रहा तुमको, समझना भी नहीं ऐसा।

अंजामे- इश्क मेरे दोस्त-----------------।।

मगर पछतावोगे बहुत तुम, करोगे प्यार अगर ऐसे।

असर होगा जरूर कल को,तुम्हारे बच्चों पर इससे।।

करेंगे वो भी यही कर्म, देखकर कदम तुम्हारा ऐसा।

अंजामे- इश्क मेरे दोस्त-----------------।।

- गुरुदीन वर्मा आज़ाद

तहसील एवं जिला- बारां (राजस्थान)