ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

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गीतों का इस जहान को भंडार दे गयी,

संगीत का हमको नया संसार दे गयी।

दीदी कहा समाज ने हिन्दोस्तान ने,

लाखों नए इस देश को फनकार दे गयी।

जिस देवता के गीत को गाकर किया अमर,

उस गीत से प्रदीप को आभार दे गयी।

मैं क्या कहूँ उसके लिए  शब्दों की है कमी,

साहित्य को सुर ताल का उपहार दे गयी।

आवाज ही पहचान है जिस गीत में कहा,

उस लेखिनी की नोंक को भी धार दे गयी।

वो शारदा की साधिका भारत का रत्न थी,

करुणा दया के साथ में शृंगार दे गयी।

वो चाहती थी देश ये फिर से महान हो,

इसके लिए सरकार को आधार दे गयी।

उसने सिखाया शब्द से सागर को साधना,

"हलधर" हमारी नाव को पतवार दे गयी।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

(स्वर कोकिला लता जी को -विनम्र शब्दांजली)