रंगोली - सुनील गुप्ता

(1) " रं ", रंगों से भरी
है ये जिंदगी
आओ इसे खिलाए चलें !
और महकें सदा कुमुदिनी की तरह......,
सबसे हर पल हर क्षण मुस्काए मिलें !!
(2) " गो ", गो है माता
है गो पृथ्वी
ये वाणी और इंद्रिय !
आओ चलें रचाए हर पल उत्सव.....,
और सजाएं रंगोली से अप्रतिम दृश्य !!
(3) " ली ", लीपते रंगों से
कल्पनाओं से उकरें
सुंदर मनमोहक खिली रंगोली !
और चलें करते श्रीलक्ष्मीजी को अर्पण...,
गाते श्रद्धासुमन राग प्रिय हिंडोली !!
(4) " रंगोली ", रंगोली है दर्शाए
सदैव रुप खिलाए
दिखलाए सुंदर मनोभावों के चित्रण !
और चले जीवन में करते प्रकट........,
आशादीप की अनमोल एक किरण !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान