मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

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विमल नाम, आनंद धाम,

जप राम नाम ,जप राम राम।

है राग राम, वैराग्य राम,

है ज्ञान राम ,विज्ञान राम,

संस्कृति राम, संस्कार राम,

है काम्य राम, निष्काम राम।

कमनीय राम ,भजनीय राम

परितोष हृदय के राम राम,

हैं तुझ में राम और मुझ में राम,

कण कण में राम, भज राम राम।

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नभ की सिंदूरी आभा,

किरणों ने जाल बिछाया है,

मन का पंछी मोहित होकर,

खुद ही बंधने आया है।

उड़ा जा रहा मुग्ध मगन,

लहराया सा भरमाया सा,

निस्सीम व्योम की बाहों में,

निज पीर मिटाने आया है।

- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड