मुश्किलें मिलके हल कर लें - मीनू कौशिक

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मुश्किलें जहां की सब , आओ मिलके हल कर लें,

एक  कदम  बढ़ाओ  तुम, हम  अहम्  को  मारेंगे ।

दर्द-ओ-ग़म  का  सौदागर , यार  ये  ज़माना  है

मुहब्बतों  के  मरहम  को  , बाज़ार  में ‌ उतारेंगे ।

जाने  क्यूँ  बयां  कर  दी , मुश्किलें  सभी  अपनी

अब  इसी  के  चलते  हम , हर‌  कदम  पे  हारेंगे ।

आओ कुछ तो जिंदा रखें , पुरखों की उस रवायत को

अपना  कहके  अपनों  को , दिल  से  हम  पुकारेंगे ।

हर चाह उनकी  पूरी  करें , एक यही उनकी चाह है

बेख़बर   बुढ़ापे  को ,   तन्हा   वो  गुजारेंगे ।

और अब भला  कब  तक , भागेंगे  जिम्मेदारी  से

मां-बाप  के लिये  क़र्ज़ को  , हम  ही  तो  उतारेंगे ।

️ मीनू कौशिक 'तेजस्विनी ', दिल्ली