कांग्रेस छोड़, अलग पार्टी बनाने वाले नेताओं के साथ एक मिथक मजबूरी

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Vivratidarpan.com देहरादून-  कांग्रेस छोड़ कर अलग पार्टी बनाने वाले नेताओं के साथ एक मिथक कहें या मजबूरी, वे कांग्रेस नहीं छोड़ सकते, चाहे किसी भी रूप में हो, कांग्रेस का दामन नहीं छोड़ सकते। कांग्रेस के पहले विभाजन के आज तक तो यही देखने में रहा है। 60 के दशक के उत्तरार्ध्द में कांग्रेस इंडीकेट सिंडिकेट आपने सुना ही होगा। 1977 में विभाजन हुआ तो बाबू जगजीवन राम और हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी बनाई। निसन्देह कांग्रेस छोड़ने वाले सभी नेता बड़े कद के थे और व्यापक जनाधार वाले भी। लेकिन कांग्रेस नाम किसी किसी रूप में जोड़े रखना उनकी जरूरत रही।शरद पवार 90 के दशक में कांग्रेस छोड़ कर चलते बने तो राष्ट्रवादी कांग्रेस उनकी पार्टी बनी। हालांकि 40 साल के राजनीतिक कैरियर में पवार वह सब नहीं पा सके जो उनके ही दौर के प्रणव मुखर्जी तिवारी कांग्रेस के रूप में पा गए। पवार एक कदम आगे और दो कदम पीछे की राह पर हैं, अब तो सूरज वैसे भी ढलता जा रहा है।उसी कालखण्ड में हरियाणा में बंसीलाल ने कांग्रेस छोड़ी थी। उन्होंने हरियाणा विकास कांग्रेस बनाई और 1996 में हरियाणा में मुख्यमंत्री बने। कुछ इसी तरह का प्रयोग राव वीरेंद्र सिंह और भगवत शर्मा ने भी किया था।पश्चिम बंगाल कैसे भूल सकते हैं। वहां भी कांग्रेस से निकल कर ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई और पिछले मई माह में तीसरी बार बंगाल की मुख्यमंत्री बनी हैं। इसी तरह तमिल मनीला कांग्रेस, आंध्र और कर्नाटक के प्रयोग भी इसी तरह के हैं। हिमाचल में सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस को आप भूले नहीं होंगे, बेशक आज उसका अस्तित्व ढूंढे नहीं मिलता। देश के दूसरे राज्यों में भी इस तरह की पार्टियां बनाई जाती रही। कहीं ये पार्टियां जीवित हैं तो कहीं काल कवलित हो गई लेकिन प्रयोग कुछ इसी लीक पर हुए हैं। ममता बनर्जी और शरद पवार के प्रयास तो दीर्घजीवी भी हुए, यह आप देख ही रहे हैं।ताजा कांग्रेस पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बनाई है। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम रखा हैपंजाब लोक कांग्रेस। यानी कांग्रेस का मोह नहीं छूटा। वैसे यह निर्विवाद है कि इन तमाम नेताओं ने कांग्रेस से ही राजनीति शुरू की, लिहाजा अपने नए दल के नाम के साथ कांग्रेस जोड़े रखना उनकी जरूरत भी है और लोगों को यह भरोसा देने का प्रयास भी कि कांग्रेस के वास्तविक सिद्धान्तों का पालन तो वही कर रहे हैं। देखा जाए तो यह सच भी है, क्योंकि वास्तव में आज तक असली कांग्रेस के सिद्धान्तों का पालन वही कर रहे थे। इसमें दो राय भी नहीं हैं। ज्यादा दूर क्यों जाएंजनता पार्टी के पतन के बाद जो कांग्रेस उभरी वह नितांत एक परिवार की कांग्रेस थी और आज तक वह उसका अनुसरण कर रही है। यह पिछले महीने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के पूर्व और बैठक के घटनाक्रम से साफ भी हो चुका है।पंजाब में कांग्रेस का नाटक शुरू हुआ तो पार्टी के आला दर्जे के नेता कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया था कि जब पार्टी में कोई अध्यक्ष नहीं है तो फैसले कौन ले रहा है? जवाब में सिब्बल को पार्टी के लोगों ने औकात बता दी थी और 16 अक्टूबर को हुई कार्यसमिति की बैठक में तो सोनिया गांधी ने दो टूक कह दिया कि उन्हें बेशक दो साल पहले अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन वह पूर्णकालिक अध्यक्ष हैं। पार्टी के लोग किसी तरह की गलतफहमी में रहें। हालांकि उससे काफी पहले कप्तान अमरिंदर सिंह कांग्रेस छोड़ने का मन बना चुके थे लेकिन तब से उनकी नई पार्टी के ऐलान का इंतज़ार किया जा रहा था और धनतेरस के दिन उन्होंने पंजाब लोक कांग्रेस की घोषणा कर दी। कौन जानता है कि अगले कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हीं की पार्टी वास्तविक कांग्रेस के रूप में उभरे। वहां सोनिया की कांग्रेस में चल रही उठापटक के बाद तो यही संकेत दिख रहे हैं। बहरहाल एक बात तो यह साफ है कि कांग्रेस को अलविदा कहने वाले नेताओं द्वारा अपनी नई पार्टी के नाम के साथ किसी किसी तरह कांग्रेस जोड़े रखना एक जरूरत भी है। आगे आगे देखिए, होता है क्या। आने वाले दिनों में बहुत कुछ होना बाकी है। आप भी नजर बनाए रखिये। इतना तो तय है, जो कुछ भी होगा, दिलचस्प होगा।