जिन्दगीसुमी लोहानी

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जीवन कहना भी,

माँ की कोख से चिता तक की बात ही तो है।

माया मोह के जाले मे उलझते,

सांसारिक सुख की मृगतृष्णा के पिछे भागते।

अनन्त पीडा की सागर मे डुबते, उतरते,

मांस का फूल मट्टी मे मिलने तक की कहानी है।

जितना भी सफलता के शिखर चुम लो,

धन-दौलत से भण्डार भर लो,

हीरे जवाहरात का अंबार लगा लो,

संघर्षों की कथाएं रच लो,

अन्त मे जिस्म के कपडे भी उतार कर,

खाली मुठी, रिता हाथ अकेले ही जाना है।

बल से पर्वतों को उठा लो,

अंगुली के इशारो से सभी को नचा लो,

महाप्रस्थान मे दूसरे की कन्धे पे चढ् कर जाना है।

शून्य से शुरू हो कर,

शून्य हो कर विलीन होना ही है,

मै, मेरा, जग सारा,

कल वो गया,

आज ये भी गया,

कभी भी सकती है जाने की मेरी बारी,

कहते, सुनते

मौत का इन्तजार करते रहने का नाम है जीवन,

वास्तव मे घर से घाट तक की यात्रा है जिन्दगी ... !

- सुमी लोहानी, काठमांडू , नेपाल