ज़िंदगी - प्रीति आनंद

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रूकती नहीं ये ज़िंदगी किसी के आने से ना जाने से ,

चलती ही रहती है ज़िंदगी हरदम किसी भी बहाने से I

चाहे कैसा और कितना भी हो दुख-दर्द का कोई मंज़र ,

चाहे दिल में उफन ही रहा हो गमों का गहरा  समुन्दर ,

कोई अपना खोया हो या कोई किसी का हो गया हो,

फट गई हो ये धरती या वो नीला आसमान सो गया हो ,

उजड़ भी जाए अगर खिला हुआ कहीं का वो मधुबन,

सुना भी हो जाए गर कोई खुशियों से भरा घर-आँगन,

पार कर सारा समुंदर कश्ती डूबे चाहे किनारे पर,

अच्छी-बुरी,खरी-खोटी बात फैली भी हो ज़माने भर ,

किसी ने की हो किसी से कभी भले ही लाख बेवफ़ाई

या किसी ने खुद ही अपनी ज़िंदगी  में हो आग लगाई,

रुकती नहीं ज़िंदगी किसी अफ़सोस या अफ़साने से,

चलती ही रहती है ज़िंदगी हरदम किसी भी बहाने से l

- प्रीति आनंद , इंदौर, मध्य प्रदेश