साथ - जया भराड़े बड़ोदकर

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सभी का उपवन में

फूलों संग खुश्बू का,

हवा ओं संग-संग

फिजाओं का,

नजरों संग बोली का,

मन के संग-संग

ख्वाहिशों का,

कितना साथ जरूरी है।

समुंदर संग उठती

लहरों का,

वृक्षों संग घनता का,

पँछी संग पंखों से,

ऊँची-ऊँची उड़ान का

बहुत-बहुत जरूरी है

माटी संग जुड़ने का,

धरती से सहन करने का,

आसमां की ऊँचाई, 

जीवन की सार्थकता,

आज की सच्चाई है,

उल-जलुल प्रश्नों से,

दुश्मनी और लड़ाई से,

सरलता जीवन की,

शालीनता तन मन की,

क्यूँ कर उलझाई है।

प्रकृति से सिखा है,

साथ-साथ सबके,

मौसम संग चल के,

हर मुश्किल को

आसान करना है।

अनुकूलता समदर्शी,

सब इसी जन्म में

साथ-साथ पाना है,

छुट गया गर साथ तो

मंजिल तक नहीं पहुचेंगे,

दुनिया में फिर सबके

साथ-साथ केसे रह सकेंगे ?

मिलके तुमसे हम सब,

खुशहाली ला सकेंगे।

- जया भराडे बड़ोदकर

नवी मुंबई, महाराष्ट्र