किस से दिल लगा बैठे = संजय जैन

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हम भी किस से

दिल लगाकर बैठे है।

जो जमाने से डरकर

घर में बैठे है।

मौहब्बत  की बातें

दिन रात करते थे।

जब मिलने का वक्त आया

तो डर के घर में बैठे है ।।

डर-डर के मौहब्बत  तो

हमने शुरु की थी।

वो न जाने आज

किस डर को ले बैठे है।

अब भी वक़्त है सनम

घर से निकलकर देखो।

तेरे दीदार को हम

तेरे घर के सामने बैठे है।।

तेरे इंतज़ार में अब

पत्थर के हो गये है।

न जाने किस डरपोक से

मौहब्बत करके बैठे है।

वो महबूब के लिए तो

बहुत तरस रही है।

पर जमाने के डर से

नहीं मिल पा रही है।।

अब ये दिल संभल

नहीं रहा तुम्हारे बिना।

कैसे आऊं मैं अब

तुम्हारे दिल के अंदर।

जो भी है बात दिल में

खुलकर कह दीजिये।

और अपने मन को

हल्का कर लीजिये।।

दिल में लगी है जो आग

उसे बुझने मत देना।

मौहब्बत  की लो को

दिल में जलाये रखना।

दिल के अंगारो को

ओठों पर तुम रख देना।

और मौहब्बत के दीप

जबा दिलो में जला देना।।

= संजय जैन "बीना" मुंबई