हम डिजिटल हो गए = डॉ भूपिंदर कौर
घर से लेकर, क्लास रूम तक,
बाजार से लेकर , शॉपिंग तक,
समाज से लेकर, रिश्तों तक,
सब डिजिटल हो गए ।
बधाई से लेकर, शहनाई तक,
मौत से लेकर, जुदाई तक,
प्यार से लेकर, तन्हाई तक,
सब डिजिटल हो गए ।
घर से काम और आराम
खाना-पीना, ऐश तमाम
ऑनलाइन नौकरी,
ऑनलाइन सैलरी,
सब डिजिटल हो गए ।
भैया की राखी,
बहना का प्यार,
मम्मी का जन्मदिन,
पापा का दुलार,
सब डिजिटल हो गए।
मंदिर, मस्जिद, देवालय,
कीर्तन और पूजा-पाठ,
दादी-नानी की कहानियां,
भाई-बहनों की शैतानियां,
सब डिजिटल हो गए ।
पढ़ना सीखें और कोर्स करें,
गाड़ी चलाना सीखें,
पकवान बनाना सीखें,
न्यूज़ चैनल और घटनाएं,
पल में देखें, यूट्यूब चलाएं,
सब डिजिटल हो गए ।
नेट और फोन हो गए सस्ते ।
हल्के हो गए बच्चों के बस्ते ।
ओपन बुक एग्जाम हुए ।
घर से रिजल्ट यूनिवर्सिटी गए।
सब डिजिटल हो गए ।
जहर से मौत, जहर से दवा,
फोन एक रोग,
या साधन तरक्की का,
चुन ले तेरा, जो दिल चाहे,
मरें या अमर हो जाए?
सब डिजिटल हो गए ।
मार खाते लोगों की, जानवरों की ,
किसी को अपमानित करते हुए,
उसकी वीडियो वायरल करते हुए,
हम डिजिटल हो गए ।
संवेदनहीन हो गए हम,
भावनाएं मर चुकी,
हम मशीन हो गए,
हा .....हम डिजिटल हो गए l
- डॉ भूपिंदर कौर , नई दिल्ली