प्रतीक्षा तुम्हारी = अनुश्री 'श्री'

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प्रतीक्षा में तुम्हारी मैं, ना सोयी रात भर सजना ।
गुंथी वेणी नक्षत्रों की, सकल आकाश पर सजना ।।

बुहारे राह के कंटक, तुम्हारे पग की आशा में ।
भुलाई भौतिकी तृष्णा, तुम्हारी दृश्य-पिपासा में ।
कंटिका हैं चुभोती वक्ष का मध्य भाग ओ सजना ।
प्रतीक्षा में तुम्हारी मैं, ना सोयी रात भर सजना ।।

झरोखे बैठी, समीरण को अपलक ही निहारूँ मैं ।
निशा भर तेरी स्मृति से,अंबकजल खूब निखारूँ मैं ।
तेरी पुतली में मैं जड़ दूँ, सुख के भाग्य सब सजना ।
गुंथी वेणी नक्षत्रों की, सकल आकाश पर सजना ।।

निर्झर सी प्रकृति लेकर, तेरे ही द्वार आयी हूँ ।
तुहिना भर कपोलों पर, तेरी चौखट पे आयी हूँ ।
तेरे बिन कट गया वपु जो, उसे उद्धार दो सजना ।
प्रतीक्षा में तुम्हारी मैं, ना सोयी रात भर सजना ।।

कलाएँ चंद्र की मुझको, प्रयत्न तेरे सुनातीं हैं ।
दिखा अभिसार को स्वप्न में,खुली आँखों सुलातीं हैं ।
सहस्रों युग का मैं यौवन, तुम्हीं पर वार दूँ सजना ।
गुंथी वेणी नक्षत्रों की, सकल आकाश पर सजना ।।
©अनुश्री 'श्री' गाजीपुर उत्तर प्रदेश