प्रतीक्षा प्रेम की = ज्योत्स्ना रतूड़ी

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प्रतीक्षा प्रेम की होती बहुत कष्टदाई,

इंतजार तो वैसे भी होता ही है दुखदाई,

एक पल लगता है एक साल समान,

विचरण करते उन यादों में होती जो सुखदाई।

लगती है सबसे कठिन घड़ी वह परीक्षा की,

करनी पड़ती है कभी जो प्रतीक्षा प्रेम की,

काटे न कटता है वह विरह वेदना का समय,

सोचो मीरा ने कैसे प्रतीक्षा की होगी कृष्ण की ।

प्रतीक्षा प्रेम की कभी यादगार बन जाता है,

तो वही प्रेम प्रतीक्षा में नासूर भी बन जाता है,

चढ़ जाते हैं कभी कई प्रेम की बलिवेदी पर,

तो अकस्मात से कभी सुखद अनुभूति ले आता है।

किसी की तो उम्र ही कट जाती है प्रतीक्षा प्रेम में,

पर लौट कर न आता है साजन फिर से जीवन में,

उनके लिए प्रतीक्षा प्रेम एक अभिशाप बन जाता है,

तो किसी का प्रेम कटता है अश्रुपूरित तिमिर रात में।

= ज्योत्स्ना रतूड़ी *ज्योति*, उत्तरकाशी, उत्तराखंड