उमस - आशा पराशर
Sep 14, 2021, 23:27 IST
| लगता है बादल रूठ गए ,
हवा रुक-रुक कर आ रही है ,
सॉस लेना दुश्वार हुआ ,
उमस भी बढ़ती जा रही है।
न कुछ सुनते है , न कुछ कहते है वो ,
एक हम ही है सब कुछ सहते है जो।
बुलाने से भी अब नहीं आते ,
कितनी शिद्दत से उनको बुला रही ,
उमस है कि बढ़ती ही जा रही।
इल्तेज़ा थी कि वो कुछ कहे , कुछ सुने ,
सारे शिकवे सावन की बूंदों संग बहे ,
रूठने की भी कोई वजह होगी ,
न वो बोले , न नज़रे बता रही ,
उमस है की बढ़ती ही जा रही।
मौसम आये और आकर चले भी गए ,
बेरुखी उनकी कोई कब तक सहे ,
बिजलियाँ जो चमकती है चमकने दो ,
बेवजह वो गुस्सा दिखा रही ,
उमस है की बढ़ती ही जा रही।
- आशा पराशर , जयपुर (राजस्थान)