ठाकुरजी व श्री जू की आँख मिचौली - स्वर्णलता

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फूल वन डोलत प्रीतम प्यारी।

नैन मीट खेलें छुपन छुपायी ,

राधे रमनबिहारी।   

एक ओर श्यामा जू को दल है ,

एक ओर गिरधारी।

कर कमलन ,श्रवनन सों टोह ले ,

ढूँढत है बनवारी। 

                 

पग अटक्यो ,गिरे ठोकर खा कर,

श्यामा जू लें सम्भारी। 

मुकुट चन्द्रिका ,बेसर नथनी,

ऊरझ ऊरझ ऊर्झारी।

ललिता विशाखा चन्द्र सखी मिलि ,

सुरझ सुरझ सुरझारी।           

इत उत देखत ,कछु सकुचावत ,

नैन सैंन मुस्कारी।           

अद्बुध रस बरस्यो आज बृज में,

भीज रहे नर नारी।

श्यामासखि [गुरूदेव ]आज इन दोऊअन पे

कोटि काम रती वारी।

रानी जन्म-जन्म की प्यासी ,

करुणा कोर बरसा री।

- स्वर्णलता, दिल्ली