ठाकुरजी व श्री जू की आँख मिचौली - स्वर्णलता
Jul 22, 2021, 22:58 IST
| फूल वन डोलत प्रीतम प्यारी।
नैन मीट खेलें छुपन छुपायी ,
राधे रमनबिहारी।
एक ओर श्यामा जू को दल है ,
एक ओर गिरधारी।
कर कमलन ,श्रवनन सों टोह ले ,
ढूँढत है बनवारी।
पग अटक्यो ,गिरे ठोकर खा कर,
श्यामा जू लें सम्भारी।
मुकुट चन्द्रिका ,बेसर नथनी,
ऊरझ ऊरझ ऊर्झारी।
ललिता विशाखा चन्द्र सखी मिलि ,
सुरझ सुरझ सुरझारी।
इत उत देखत ,कछु सकुचावत ,
नैन सैंन मुस्कारी।
अद्बुध रस बरस्यो आज बृज में,
भीज रहे नर नारी।
श्यामासखि [गुरूदेव ]आज इन दोऊअन पे
कोटि काम रती वारी।
रानी जन्म-जन्म की प्यासी ,
करुणा कोर बरसा री।
- स्वर्णलता, दिल्ली