गीत  - रेनू द्विवेदी

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प्रकृति और हरियाली नूतन,

आकर्षित करती मन को!

मेरे प्राणनाथ शिव भोले,

चलो धरा पर चलते हैं!

अति मनभावन सावन उस पर,

झूले मुझे बुलाते हैं!

भींगेंगे हम तुम बरखा में,

चलो घूम कर आते हैं!

स्वप्न सुहाने सुंदर -सुंदर,

इन पलकों पर पलते हैं।

मेरे प्राणनाथ शिव भोले,

चलो धरा पर चलते हैं!

देख-देख निज रूप रंग को,

ठण्डी आहें भरना तुम !

केवल प्रेम जता नयनों से,

मीठी बातें करना तुम!

मन की गतिविधियों को गति दे,

प्रेम-अनल में जलते हैं!

मेरे प्राणनाथ शिव भोले,

चलो धरा पर चलते हैं!

भाँग-धतूरा संग तुम्हारे,

मैं भी थोड़ा खाऊँगी!

भस्म लगाकर चाहत वाली,

प्रेम- गीत मैं गाऊँगी !

इक दूजे की बाहों में प्रिय,

हिम जैसे हम गलते हैं!

मेरे प्राण नाथ शिव भोले,

चलो धरा पर चलते हैं!

महादेव परमेश्वर मेरे,

हठ मेरा पूरा कर दो !

शम्भु उमापति अविनाशी शिव,

आँचल में खुशियाँ भर दो!

कुछ दिन मानव बन, हे स्वामी,

मनु-साँचे में ढलते हैं।

मेरे प्राणनाथ शिव भोले,

चलो धरा पर चलते हैं!

- रेनू द्विवेदी, लखनऊ, उत्तर प्रदेश