गीत = निशा सिंह नवल
हर पथिक की झोलियों में प्यार होगा,
इस धरा का फिर नवल श्रृंगार होगा।
हादसों का डर अभी बैठा हुआ है,
अंतरो के छोर तक पैठा हुआ है,
भूल जाओ गम भरी बातें पुरानी,
हर गले में जीत का अब हार होगा,
इस धरा का फिर नवल श्रृंगार होगा ।
उपवनों में फूल खुशियों के खिलेंगे,
ईद, होली में गले हम फिर मिलेंगे,
हारना मत तुम अभी साथी सफर में,
है अधूरा स्वप्न जो साकार होगा,
इस धरा का फिर नवल श्रृंगार होगा।
दूर तक माना अभी यह तम् घना है,
इसलिए कुछ हौसला भी अनमना है,
हो अडिग विश्वास मन में जीतने का,
है यकीं हर सिन्धु भव का पार होगा,
इस धरा का फिर नवल श्रृंगार होगा।
दर्द अपनो के जरा हँसकर बँटा लो,
ये निराशा की पड़ी चादर हटा लो,
टूटकर बिखरा अभी जो लग रहा है,
नव सृजन करता हुआ संसार होगा,
इस धरा का फिर नवल श्रृंगार होगा।
= निशा सिंह नवल, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)