गीत = किरण मिश्रा

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प्रेम में गुजरे नदी जब,गगन में भी प्यास भर दे,

हो द्रवित सागर का सीना,वाष्प बन बादल बरस दे।

धरा के अधरों को छूकर,

नृत्यरत हो निर्झराएं,

चूम के वृझों का सीना,

प्रेमरत हो मल्लिकाऐं।

मलयानिल संदल सुवासित,

विटप का ऋंगार कर दे,

नवल कोंपल , मृदुल यौवन,

विहग संग, अभिसार कर दे।

प्रेम में गुजरे नदी जब,गगन में भी प्यास भर दे,

हो द्रवित सागर का सीना,वाष्प बन बादल बरस दे।

महक भर आनन सजल,

पुष्प कलिका नित नवल,

अधराधर पराग मज्जित,

खिलखिला रहे  कँवल

कोयलों की कूक सुन ,

हिय हूक का संचार कर दे,

नाच उठे मन मयूरा

दिशि चहुँ उल्लास भर दे

प्रेम में गुजरे नदी जब,गगन में भी प्यास भर दे,

हो द्रवित सागर का सीना,वाष्प बन बादल बरस दे।

गुनगुनाती तितलियाँ,

झूम उठीं बदलियाँ,

ओढ़ चूनर पीत सरसों,

अवनि ने पहनी लहरिया।

झूमते अलियों का झुरमुट,

शिशिर को मधुमास कर दे,

पिउ मिलन की चाह चातक,

मेघ में हुंकार भर दे।

प्रेम में गुजरे नदी जब,गगन में भी प्यास भर दे,

हो द्रवित सागर का सीना,वाष्प बन बादल बरस दे। 🌹

पहन इंद्रधनुषी वसन,

मुस्कुराए गिरि उपवन

चन्द्र चन्द्रिका मिलन

मुस्कुराए तारागण,

रात का आँचल महक कर

पिऊ हदय अंगार कर दे,

सुबह की पलकों पर सूरज,

किरण से मनुहार भर दें,

प्रेम में गुजरे नदी जब,गगन में भी प्यास भर दे,

हो द्रवित सागर का सीना, वाष्प बन बादल बरस दे। 🌹

= किरण मिश्रा, #स्वयंसिद्धा, नोएडा