गीत - डॉ० अशोक ''गुलशन''
Dec 19, 2021, 20:38 IST
| कब तक दूर रहोगे आखिर आओ पास हमारे|
बीते सदियाँ -साल मिलन की आशा रही अधूरी,
विरह-दिवस की गणना हमसे अब तक हुई न पूरी |
भूल चुके हम याद में अब तक जाने कितनी रातें,
पता नहीं नीदों में कब-कब जीते कब -कब हारे ||
यौवन की चौखट पर तुमने लगा दिया है ताला,
कैसे खुले द्वार अब कैसे भागे मन मतवाला |
विचलित होता रहा राह में मिला नही गंतव्य हमें ,
आ जाओ तो पट खुल जाए लाख जतन कर हारे||
सुधि की ज्वाला धधक रही है अपने दिल के अन्दर,
आ जाओ तो भर लें आँखें फिर से वही समन्दर|
कब तक अकथ कहानी कहकर मन को धीर बंधाएं,
मन के भीतर का मन अब तो हर पल हमको मारे||
---डॉ ० अशोक ''गुलशन'', कानूनगोपुरा (उत्तरी), बहराइच (उ०प्र०)