गीत - डॉ० अशोक ''गुलशन''

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कब तक दूर रहोगे आखिर आओ पास हमारे|

बीते सदियाँ -साल मिलन की आशा रही अधूरी,

विरह-दिवस की गणना हमसे अब तक हुई न पूरी |

भूल चुके हम याद में अब तक जाने कितनी रातें,

पता नहीं नीदों में कब-कब जीते कब -कब हारे ||

यौवन की चौखट पर तुमने लगा दिया है ताला,

कैसे खुले द्वार अब कैसे भागे मन मतवाला |

विचलित होता रहा राह में मिला नही गंतव्य हमें ,

आ जाओ तो पट खुल जाए लाख जतन कर हारे||

सुधि की ज्वाला धधक रही है अपने दिल के अन्दर,

आ जाओ तो भर लें आँखें फिर से वही समन्दर|

कब तक अकथ कहानी कहकर मन को धीर बंधाएं,

मन के भीतर का मन अब तो हर पल हमको मारे||

---डॉ ० अशोक ''गुलशन'', कानूनगोपुरा (उत्तरी), बहराइच (उ०प्र०)