गीत - अनिरुद्ध कुमार
समय की धार पहचानें, नजाकत प्यार की जानें।
कहीं दिल टूट ना जाये, बता अपना किसे मानें।।
जुबां पे नाम रहमत का,
बताते खेल किस्मत का।
वफ़ा में क्या, जफ़ा में क्या,
दिखाते रोज सब सपना।
वफादारी कहाँ दिखती, सुनाते नित नये गानें।
कहीं दिल टूट ना जाये, बता अपना किसे मानें।।
मतलबी खेल है सारा,
रिझाते लग रहे प्यारा।
उजाले की करें खेती,
लुभाते हैं गजब नारा।
जताते कुछ निभाते कुछ, रुपहली चाँदनी तानें।
कहीं दिल टूट ना जाये, बता अपना किसे मानें।।
जमाना आज हरजाई,
लगे सब लोग सौदाई,
अक्ल पर जोर कितना दें,
पड़े हर रंग दिखलाई।
बतायें क्या, जमाने से, सभी दिल में जहर सानें।
कहीं दिल टूट ना जाये, बता अपना किसे मानें।।
नहीं कुछ भी, नजर आता।
पकड़ बैठे सभी माथा।
इधर पोखर, उधर खाई,
किसी का क्या बता जाता।
घड़ी लगती, भयावह सी, बनें हम आज अंजाने।
कहीं दिल टूट ना जाये, बता अपना किसे मानें।।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद (झारखंड)