गीत (अवधी) - डॉ0 अशोक 'गुलशन'

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पिया मेंहदी कै पतिया झुरान,

तोहरे सुधिया मा।

फूल सेजिया कै सब कुम्हलान,

तोहरे सुधिया मा।

दिन-दिन भर हम रोई-गाई,

जागि-जागि कै रैन बिताई।

बीच अँगुरी कै बिछुआ हेरान,

तोहरे सुधिया मा।

छपरस टपकै टप-टप पानी,

बिन तोहरे बरबाद किसानी।

बचा ऊपर से खेतेक लगान,

तोहरे सुधिया मा।

धन-पशु कै है चारा नाहीं,

पइसा बिना गुजारा नाहीं।

गाय फिर से है बछिया बियान,

तोहरे सुधिया मा।

रोज-रोज बरदेखुआ आवैं,

बढ़ि-चढ़ि कै सब दाम लगावैं।

होइगै बड़का लड़िकवा जवान,

तोहरे सुधिया मा।

- डॉ0 अशोक 'गुलशन'

उत्तरी क़ानूनगोपुरा, बहराइच (उत्तर प्रदेश)