श्री राम यज्ञ - (58वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर  

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जय ज्ञान दायिनी मैय्या की ।

जय हंस वाहिनी मैय्या की ।।

श्री राम नाम में सीता है ।

सच्ची है परम पुनिता है ।।1

श्री का मतलब ही सीता है ।

श्री हीन मनुज तो रीता है ।।

लंका पर भी उपकार किया ।

श्री शब्द उसे उपहार दिया ।।2

राघव ने काम अनेक किये ।

वानर द्राविड़ सब एक किये ।।

नव संस्कृति का आधार रखा ।

भाई चारा व्यवहार रखा ।।3

आदर्श राम के उच्च रहे ।

निष्कर्ष राम के उच्च रहे ।।

आर्यावृत को आकार दिया ।

दशरथ सपना साकार किया ।।4

हैं भरत भ्रात पक्के सेवक ।

लक्ष्मण जैसे सच्चे सेवक ।।

शत्रुघन जी सबके प्यारे ।

सबसे छोटे सबसे न्यारे ।।5

हैं राम राज्य के संचालक ।

बाकी तीनों हैं परिचालक ।।

हनुमान राम जी के संगी ।

सच्चे सेवक हैं बजरंगी ।।6

हनुमत का मान जरूरी है ।

उनका गुणगान जरूरी है ।।

हृदय हरि नाथ बिराजे हैं ।

नारायण साथ बिराजे हैं ।।7

राघव से शोभित सिहासन ।

है राम राज में अनुशासन ।।

दायित्व सभी आवंटित हैं ।

कर्तव्य सभी आवंटित हैं ।।8

चारो के दो दो पूत हुए ।

रघुकुल में आठ सपूत हुए ।।

लव कुश के पिता राम रघुवर ।

हैं भरत सपूत तार्क्ष् ,पुष्कर ।।9

अच्छा लक्ष्मण पूतों का कद ।

वो चंद्रकेतु औ चित्रांगद ।।

हैं पूत शत्रुघन भी प्यारे ।

शूरसेन , सुबाहू हैं न्यारे ।।10

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून