श्री राम यज्ञ - (57वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर 

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सुमिरन है शब्द भवानी का ।

सुंदर यह भाग कहानी का ।।

आ गए अयोध्या में रघुवर ।

दीपों की ज्योति जली घर घर ।।1

हो रहे तमाशे गलियों में ।

बट रहे बतासे गलियों में ।।

बज रही महल में शहनाई ।

मिष्ठान बनाते हलवाई ।।2

अब राज तिलक की तैयारी ।

सारी जनता अब बलिहारी ।।

पकवान बन रहे घर घर में ।

मिष्ठान बन रहे घर घर में ।।3

वृक्षों का तृण तृण चहक रहा ।

मिट्टी का कण कण महक रहा ।।

ये प्रथा आज दुहराते हैं ।

दीपों का पर्व मानते हैं ।।4

राजा अब राम अयोध्या के ।

सुधरे सब काम अयोध्या के ।।

हैं भरत राम जी के सहायक ।

लक्ष्मण शत्रुघ्न खास नायक ।।5

आधार राम हैं भारत के ।

आचार राम हैं भारत के ।।

संचार राम हैं भारत के ।

उपचार राम हैं भारत के ।।6

हैं राम सभ्यता के पोषक ।

हैं राम दिव्यता के पोषक ।।

हैं तीन लोक के प्रतिपालक ।

सारी दुनिया के संचालक ।।7

हैं राम सत्य के संचारक ।

हैं राम दैत्य के संहारक ।।

हर उर में राम समाये हैं ।

घर घर में राम समाये हैं ।।8

हनुमत को भूल नहीं सकते ।

गफलत में झूल नहीं सकते ।।

हर वक्त रहे जो उपयोगी ।

हनुमान राम के सहयोगी ।।9

ऋषियों ने करी गवाही है ।

बजरंगी राम सिपाही है ।।

नारायण के सच्चे संगी ।

पूजे जाते हैं बजरंगी ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून