श्री राम यज्ञ- (55वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर 

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संसाधन शब्द स्वरूपा के ।

आराधन शक्ति स्वरूपा के ।।

अब भेद विभीषण खोल दिया ।

हरि के कानों में बोल दिया ।।1

वो बाण शक्ति का नारायण ।

वो ही वध का होगा कारण ।।

जो बाण आपके पास रखा  ।

दुर्गा ने छूकर खास रखा ।।2

दसवें दिन भीषण युद्ध हुआ ।

अब लक्ष्य राम का शुद्ध हुआ ।।

कौदण्ड राम ने तान दिया ।

दुर्गा का शर संधान किया ।।3

ज्यों नाभि केंद्र में बाण लगा ।

लंकेश देह से प्राण भगा ।।

रावण बोला हे राम मरा ।

काया मेरी मत और जरा ।।4

मेरा भाई दे गया दगा ।

है तेरा वो ही मीत सगा ।।

मैं जान गया तू नारायण ।

पहचान गया तू नारायण ।।5

शरणागत कर दे नारायण ।

मुझको अवसर दे नारायण ।।

लंका में शोक तमाम हुआ ।

अब पूरा युद्ध विराम हुआ ।।6

रावण का यश नीलाम हुआ ।

नारायण को आराम हुआ ।।

मंदोदरि बिलख बिलख रोयी ।

पति की जिद में कुनवा खोयी ।।7

रावण के शव का दाह हुआ ।

 नारायण स्वयं गवाह हुआ ।।

मुख आग विभीषण दिखलाई ।

भाई तो आखिर है भाई ।।8

ऐसे रावण का अंत हुआ ।

साक्षी आकाश अनंत हुआ ।।

इतिहास सुनहरा हम सबका ।

त्योहार दशहरा हम सबका ।।9

आशीष राम से पोषित है ।

सम्राट विभीषण  घोषित है ।।

जब भी जांचों सच्ची पाये ।

घर का भेदी लंका ढाये ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून