श्री राम यज्ञ - (47वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

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सुमिरन रस छंद भवानी का ।

भीषण यह भाग कहानी का ।।

है अंत निकट अभिमानी का ।

टकराव आग से पानी का ।।1

दोनों ही सुघड पुरोधा हैं ।

दोनों ही उत्तम योद्धा हैं ।।

दोनों त्रिलोक विजेता हैं ।

दोनों त्रेता के नेता हैं।।2

द्राविड़ कुल का जो जातक है।

ज्ञानी है लेकिन पातक है ।।

वो अहंकार का चातक है ।

खलनायक है वो घातक है ।।2

दूजे रघुवर रघु कुल वंशज ।

जो आर्य सभ्यता के अंशज ।।

बसते हैं जन जन के मन में ।

रहते हर मां के आंगन में ।।3

दोनों पर अस्त्र निराले हैं ।

दोनों पर शस्त्र निराले हैं ।।

दोनों ही प्रक्षेपात्र लिये।

दोनों ही वैदिक शास्त्र लिए ।।4

दोनों में वाद हुआ जारी ।

मौखिक संवाद हुआ जारी ।।

जैसे ही शंख निनाद हुआ ।

रण भू में भय आबाद हुआ ।।5

बज रहे नगाड़े रण भू पर ।

सज रहे अखाड़े रण भू पर ।।

संगर उदघोष हुआ रण में ।

निर्भयतम घोष हुआ रण में ।।6

रावण की चंद्रहास चमकी ।

राघव की खड़ग खास चमकी ।।

कौदण्ड राम के हाथ सजा ।

रावण का धनु भी साथ सजा ।।7

भीषण जारी संग्राम हुआ।

रण में भारी कुहराम हुआ ।।

कौदण्ड राम ने थाम लिया ।

पुरखों के नाम प्रणाम किया ।।8

हरि ने ज्यों प्रत्यंचा खींची ।

धरती होती ऊंची निंची ।।

सागर ने भी ऑंखें मींची ।

देवों ने भी मुट्ठी भींची ।।9

ज्यों हरि ने सावधान बोला ।

धरती कांपी अंबर डोला ।।

हरि ने ज्यों पहला वार किया ।

लाखों को परली पार किया ।।10

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून